एक ऐसे आम आदमी की शिकायत जिसे आम आदमी की श्रेणी में नहीं रखा जाता, हां ये अलग बात है कि वो खास आदमी बनने का सपना प्रतिपल देखता है।
परम आदरणीय प्रधानमंत्री जी, सादर प्रणाम।
सर्वप्रथम भारतवर्ष को विश्व पटल पर उसकी खोयी हुई मर्यादा/गौरव वापिस दिलाने के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद्। आज हमारा देश अनेक समस्याओं से जूझ रहा है चाहे वह आर्थिक क्षेत्र में हो, राजनीतिक क्षेत्र में हो, सामाजिक क्षेत्र में हो या फिर वैदेशिक क्षेत्र में। सम्पूर्ण देशवासी एक ठोस सकारात्मक व निर्णायक कदम के लिए आपकी ओर देख रहा है और एक मात्र आप ही इसके योग्य हैं जो इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं। मैं आपका झूठा महिमामण्डन नहीं कर रहा। गुजरात के मुख्यमंत्रित्व काल में आपके कार्य व विगत वर्ष में बतौर प्रधानमंत्री आपके द्वारा किये गए कार्य इस का प्रमाण है कि भारतवर्ष को उसके उपर जमी हुई विभिन्न समस्याओं से भरी धूल को हटाकर उसे चमकाने का शुभ कार्य आप ही के द्वारा संभव है।
मैं अपनी समस्याओं को आपके समक्ष रखने के लिए इसलिए उद्यत हूं, क्योंकि यह केवल मेरी समस्या नहीं है वरन् हम जैसे लाखों लोगों की समस्या है। मैं आशा करता हूं कि आप इन पर अवश्य ध्यान देंगे।
सर्वप्रथम मैं यह बता दूं कि मैं एक ऐसे वर्ग से सम्बंध रखता हूं जिसे लोग आम-आदमी की श्रेणी में नहीं रखते हैं। मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं जो केन्द्र सरकार के कार्यालय में कार्यरत है। यहां एक शब्द बहुत प्रचलित है Through Proper Channel (उचित माध्यम द्वारा)। यदि अपने साथ होने वाले किसी अन्याय के बारे में शिकायत करनी हो तो Through Proper Channel शिकायत करनी पडती है चाहे वह शिकायत उसी अधिकारी के बारे में क्यों न हो जिसके द्वारा Through Proper Channel प्रक्रिया में आवेदन अग्रेषित होना हो।
परंतु मैं यह आवेदन सीधे आपको प्रेषित कर रहा हूं, क्योंकि मैं समझता हूं कि सरकारी सेवक होने के साथ-साथ मैं अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने वाला ज्येष्ठ पूत्र, अपने छोटे भाइयों को राह दिखाने वाला बडा भाई, अपनी जीवन-संगिनी के साथ कदम मिलाकर चलने वाला पति व अपनी छोटी लाडली की सभी जरूरतों को पूरा करने वाला उसका लाडला पिता भी हूं, जिसके नाते मुझे आम आदमी का वह अधिकार प्राप्त है जिसमें एक प्रजा अपने राजा (प्रधानमंत्री) से अपने मन की बात साझा कर सकता है। अत: यदि मैं सीधे-सीधे आपसे मुखातिब होकर किसी नियम का उल्लंघन कर रहा हूं तो मुझे क्षमा कीजिएगा।
आप हमारे राष्ट्र रूपी परिवार के वरिष्ठतम सदस्य हैं, इस नाते मुझे आपसे कुछ शिकायतें/निवेदन हैं जिसकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं- सर्वप्रथम मैं एक आम आदमी कैसे नहीं हूं। अपनी शिक्षा समाप्ति के पश्चात कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली गई त्रि-स्तरीय परीक्षा में कडी मेहनत के उपरांत सफलता प्राप्त कर सरकारी सेवा में आया। सरकारी सेवा में आते ही लोग मुझे अपने से विशेष स्थान देने लगे। अब मैं आम आदमी नहीं रहा उनकी नजरों में खास हो गया। परंतु यह खास आदमी कैसा खास आदमी है, प्रधानमंत्री जी इससे मैं आपको अवश्य अवगत कराना चाहता हूं। आज के समय में पानी-पूरी/गोलगप्पों का ठेला लगाने वाला, सडक किनारे फलों की रेहडी लगाने वाले की मासिक आय मुझसे अधिक है। भारत सरकार, क्षमा कीजिएगा जिसका प्रतिनिधित्व अभी आप करते हैं, के द्वारा मात्र इतना वेतन प्रदान किया जाता है जिससे गृहस्थी की गाडी किसी प्रकार खींची जा सकती है। इसमें यदि कोई सदस्य अस्वस्थ हो जाए या कोई त्योहार/समारोह/विवाह इत्यादि आ जाए तो फिर घर के मुखिया की हालत पतली हो जाती है। उस पर से बढते बच्चों के शिक्षा-सम्बंधी खर्चों की चिंता।
कहने को आप हमें वो सारी सुविधाएं प्रदान करते हैं कि हमें कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। जैसे कि आवास की सुविधा, चिकित्सा शुल्क, बच्चों के शिक्षण शुल्क आदि का भुगतान सरकार द्वारा किया जाना। परंतु महोदय जितना मकान किराया भत्ता सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है उतना में महानगर में मकान कहीं उपलब्ध नहीं हो पाता है। यदि जमीनी स्तर पर आप देखेंगे तो पाएंगे कि जितने भी मध्यम-वर्गीय कर्मचारी हैं उन्हें वास्तविक मकान किराया प्राप्त होने वाली राशि के लगभग दुगूनी अदा करनी पडती है। उस पर सातवें वेतन आयोग ने मकान किराया भत्ता को 10, 20, 30 प्रतिशत के स्थान पर 8, 16, 24 प्रतिशत कर दिया है। बच्चों के शिक्षण भत्ता के नाम पर इतनी राशि प्रदान की जाती है जिनमें प्राप्त वार्षिक शुल्क की राशि अदा की जाने वाली मासिक शुल्क की राशि के तौर पर भी पूरी नहीं पडती।
चिकित्सा शुल्क के भुगतान की विसंगतियों की ओर मैं आपका ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट कराना चाहता हूं। महोदय, लोग जब चिकित्सक के पास जाते हैं तो विपरीत परिस्थितियों में ही जाते हैं। उस समय उनका ध्यान केवल स्वास्थ्य की ओर होता है। साधारणतया सभी के मन में एक यही बात होती है कि "जान बची तो लाखों पाए"। परंतु उन्हें मुसीबत का सामना तब करना पडता है जब अदा किये गए चिकित्सा शुल्क एवं सम्बंधित राशि के भुगतान हेतु चिकित्सा बिल विभाग में प्रस्तुत करने पर उन्हें प्रत्येक रसीद पर चिकित्सक की मुहर व हस्ताक्षर एवं दवाओं की अनुपलब्धता सम्बंधी प्रमाण-पत्र मांगा जाता है। अन्यथा उनके बिलों को बिना भुगतान के खारिज/फाईल/वापिस कर दिया जाता है। अब आप ही बताएं कि जिस चिकित्सक के पास मरीजों को देखने के लिए समय का अभाव होता है, वह इन रसीदों को अभिप्रमाणित करने के लिए समय कहां से निकालेगा। अब बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली शुरूआत होने के पश्चात कर्मचारी चिकित्सकों के चक्कर लगाने में भी स्वयं को असमर्थ पाता है। फलस्वरूप यदि थोडी जमा-पूंजी रहने पर वह इस आर्थिक आघात को झेल लेता है, अन्यथा मेरी तरह महाजनों से कर्ज लेकर इस आघात को झेलने का प्रयास करता है और उसके पश्चात उस कर्ज को चुकाने में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देता है। कुछ लोग उन चिकित्सकों का सहारा लेते हैं जिनके पास नाम की डिग्री होती है और जो अपना दुकान ही रसीदों को अभिप्रमाणित करने के लिए खोले होते हैं। इनके द्वारा किये गए खर्च की प्रतिपूर्ति तो हो जाती है परंतु वास्तविक इलाज नहीं होता है। हां इलाज न करवाने के अपराध-बोध से वो बचने की कोशिश अवश्य करता है, परंतु इसमें भी उसे सफलता नहीं मिलती है।
मेरे विचार से चिकित्सा का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार एवं सरकार का कर्तव्य होना चाहिए। प्रधानमंत्री जी आपने शायद ही कभी सुना होगा कि किसी पिता ने एक बेटे का इलाज कम पैसे लगने की वजह से करवाया और दूसरे बेटे को अधिक पैसे लगने की वजह से बिना इलाज के मरने के लिए छोड दिया। जैसे परिवार के किसी भी बीमार सदस्य का इलाज उस परिवार के मुखिया का प्रथम कर्तव्य होता है, वैसे ही समस्त नागरिक की चिकित्सा/स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना सरकार का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में एवं नि:शुल्क होनी चाहिए। जितने भी निजी संस्थान हैं यदि वे सरकार द्वारा निर्धारित मानक व शर्तों को पूरा करते हों तो उनका सरकारीकरण करना चाहिए और प्रत्येक निजी संस्थान को बंद करना चाहिए ताकि चिकित्सा के व्यवसायीकरण को रोका जा सके। इसमें शामिल/लाभान्वित व्यक्तियों को बेरोजगार होने से बचाने के लिए उन्हें उचित प्रशिक्षण देकर सरकारी स्वास्थ्य सेवा का अंग बनाया जा सकता है। महोदय चिकित्सा के व्यवसायीकरण को रोकना परम आवश्यक है वरना आपकी प्रजा/नागरिक यूं ही आर्थिक अभाव में दम तोडती रहेंगी।
हम सरकारी सेवक आपसे काफी उम्मीद लगाए बैठे हैं, क्योंकि हमारा एकमात्र सहारा आप ही हैं। निजी कार्य/व्यवसाय चलाने वाले अपनी आवश्यकता की प्रतिपूर्ति करने के लिए जी-तोड मेहनत कर सकते हैं, परंतु हम सरकारी सेवकों के हाथ यहां भी बंधे हुए हैं। बिना आज्ञा/पूर्वानुमति के हम कोई अन्य कार्य भी नहीं कर सकते और विभाग में कितना भी जी-तोड मेहनत करें वही न्यूनतम मासिक वेतन प्राप्त होता है। पूरे वर्ष में सराहनीय कार्य के पश्चात एक बार प्राप्त होने वाले मानदेय की राशि (वह भी गिने-चुने लोगों को) मात्र 2500 रूपये होती है। बतौर दुर्गा-पूजा/दिवाली बोनस मात्र 3454 रूपये प्राप्त होते हैं। इन सबसे मन बहुत क्षुब्ध होता है। जब पडोस में निजी संस्थान में कार्यरत व्यक्ति पूरे माह का मासिक वेतन बोनस के तौर पर पाता है और ओवर टाईम के द्वारा अपनी जरूरतों को पूरा कर लेता है, तो मन में एक आह सी उठती है।
संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम, 1954 तथा उसके अधीन बनाए गए नियम (दिसम्बर 2010 में संशोधित) के पैरा 8ए पेंशन के अनुसार 18 मई 2009 से सभी सांसदों को 20,000 रूपये मासिक पेंशन स्वीकृत किया गया है। यह कैसा पक्षपात है मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है। प्रधानमंत्री जी एक ओर तो 2008 में पारित छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आपने 2004 के बाद भर्ती किए गये सभी सरकारी सेवकों की पेंशन समाप्त कर दी है दूसरी ओर 2010 में सांसदों का पेंशन स्वीकृत कर रहे हैं। एक ओर वह सरकारी सेवक जो अपनी पूरी जिन्दगी सरकारी विभाग को सौंप देता हैफिर भी उसे कोई पेंशन नहीं, दुसरी ओर प्रत्येक सांसद चाहे वह पूरे अवधि (पांच वर्ष) तक सांसद रहे या न रहे तब भी उसे पूर्ण पेंशन प्राप्त होता है। महोदय इस घोर पक्षपात के विरूद्ध आपका निर्णय अपेक्षित है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि मेरी/सरकारी कार्मिकों की समस्याओं के समाधान हेतु हम सातवें वेतन आयोग की ओर टकटकी लगाए देख रहे थे। परंतु इनकी रिपोर्ट से हमें घोर निराशा हुई है। रिपोर्ट की कुछ बातें बहुत ही हास्यप्रद हैं। आपसे अनुरोध है कि आप वेतन आयोग की रिपोर्ट के 65वें पृष्ठ पर वर्णित (Annexure to Chapter 4.2) न्यूनतम वेतन की गणना को अवश्य देखें। इसमें चावल 25.93 रूपये प्रति किग्रा दर्शाया गया है, परंतु बाजार में 30-35 रूपये से कम अच्छे चावल नहीं मिलते हैं। मैं दूसरा उदाहरण खाद्य तेल का दूंगा जो इसमें 114.02 प्रति किग्रा वर्णित है। महाशय बाबा रामदेव द्वारा संचालित पतंजलि उत्पाद न्यूनतम राशि पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने का दावा करती है, मैं स्वयं पतंजलि उत्पाद का नियमित उपभोक्ता हूं, परंतु वहां भी खाद्य तेल 143 रूपये प्रति लीटर की दर पर मिलता है। किग्रा में यह राशि और अधिक हो जाती है। इस गणना में 3059.44 रूपये तो केवल सामिष भोजन (मछली, मांस व अण्डा) का सम्मिलित किया गया है। अर्थात् मुझ जैसे शुद्ध शाकाहारी के लिए न्यूनतम वेतन का आधार तो 18000-3059.44=14940.56 रूपये ही है। गृह सम्बंधी (Housing) खर्च मात्र 524.07 रूपये दर्शाई गयी है। आप स्वयं देख सकते हैं कि वेतन आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन का आधार ही कितना हास्यप्रद है।
हम आपसे अपने आदरणीय प्रधानमंत्री एवं परिवार के ज्येष्ठतम् सदस्य के नाते विनम्र निवेदन करते हैं कि उपरोक्त बातों पर अवश्य ध्यान देंगे। साथ ही अत्यंत अल्प-ज्ञानी, अल्प स्तरीय सेवक/व्यक्ति होने के बावजूद आपको जो मैंनें सलाह देने की धृष्टता की है उसके लिए हमें क्षमा करेंगे।
आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।
आपका स्वजन
दिनांक: 14-01-2016
शुभेश कुमार
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